June was productive in terms of content creation. I am reciting my poetry in reels. I am feeling good about it. I wrote the following in June.
Date | Published |
06/05/2022 | मुझे आज़माना अपने बुरे वक़्त में मेरे दोस्त मैं मौसम की तरह वफ़ा नहीं बदलती इतनी कड़वाहट बातों में कहाँ से लाती हो घमंडी दोस्तों ने बनाया है या खुद चने के झाड़ पर चढ़ जाती हो अंग्रेजी पियो या देशी शराब दुःख बहार लाती है, कम नहीं करती |
06/07/2022 | फ़िक्र मुझे इस बात की है कि मैं डूब गई तो तुम्हारा सहारा कौन बनेगा |
06/14/2022 | ऐ दिल थोड़ा खुद पे रहम थोड़ा खुद पे ए'तिबार कर जितना औरों से किया उम्र बार एक बार खुद से उतना प्यार कर |
06/23/2022 | आप रहने दीजिये ये इश्क़ आपके बस की बात नहीं मुझे उम्र भर का चाहिए हफ्ते, दो हफ़्तों का साथ नहीं Aap rehne dijiye Ye ishq aapke bas ki baat nahi Mujhe umar bhar ka chahiye Hafte, do hafte ka saath nahi |
06/29/2022 | लगता है अपनों को समझाने की कोशिश उसने आज भी काफी की उसकी आवाज़ में सुकून कम सिलवटें बहुत ज़्यादा थी Lagta hai apno ko samjhane ki koshish Usne aaj bhi kaafi ki Uski awaaz mein sukoon kam Silvaten bahut zyada thi |
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बहुत ख़ूब सरू जी। आपकी ये सारी ही अभिव्यक्तियां मन को छू लेने वाली हैं।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
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