बस अकेलापन कुछ यूँ मुझे सताता है...


शाम के बाद घड़ी चलती है,
पर वक़्त ठहर जाता है,
बस अकेलापन,
कुछ यूँ मुझे सताता है!

दिल बहलाने के लिए,
चाय में अदरक डाली,
पर हर घूँट में,
तेरा बिस्कुट डुबोना याद आता है!
बस अकेलापन,
कुछ यूँ मुझे सताता है!

सोचा कैद करूँ,
ढलते सूरज के नायाब रंग,
फ़ोन के वॉलपेपर पे तेरी तस्वीर देख,
दिल सहम जाता है!
बस अकेलापन,
कुछ यूँ मुझे सताता है!

कभी बातें करती हूँ दोस्तों से,
संभालने के लिए,
पर तुम होते तो खामोशी भी सुनते,
यह सोच मन बिखर जाता है!
बस अकेलापन,
कुछ यूँ मुझे सताता है!

करवटें बदलती हूँ रात भर,
रात भर देखती हूँ घड़ी को,
तुम किसी और के बिस्तर पे हो,
यह ख्याल अंदर तक खोखला कर जाता है!
बस अकेलापन,
कुछ यूँ मुझे सताता है,
शाम के बाद घड़ी तो चलती है,
बस वक़्त ठहर जाता है!

Comments

  1. wow...maybe someone would love to sing ur composition someday. Shaam key baad ghadi toh chalti hai bass waqt thaher jata hai...
    You will not know but you have given words to express thoughts. Beautiful.

    ReplyDelete
  2. बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.....

    ReplyDelete

Post a Comment

Bricks, brickbats, applause - say it in comments!

Popular posts from this blog

यूँ दो चार घंटे के लिए नहीं

Rewind - September 2023

Death of a Nation