World's oldest trade - many are forced into it, many suffer on a daily basis. However, there are thousands who irrespective of what life has thrown at them, never deter from their duties.
फ़ुर्सत में मिलना मुझसे यूँ दो चार घंटे के लिए नहीं सिर्फ़ हाल चाल नहीं पूछना बातें करनी है तुमसे कई देखना है तुम्हें एक टक शिकवे करने है तुमसे कई हज़ार जब नाराज़ हुए थे तुम मुझसे और जब छेड़ा था मुझे बीच बाज़ार चवन्नी-अठन्नी सा ढोंग मत करना मान लेना मेरे हर कहे को सुबकियाँ से काम मत चलाना बेहने देना ग़र आँसू बेहे तो सख़्त होने का दिखावा छोड़ आना नुक्कड़ वाले बनिये की दुकान पे सिद्दत से एक बार बोल देना कि गलती होती है इंसान से तुम मुझे छोड़ गए उसका तुम्हें कभी अफ़सोस हुआ है क्या मैं नहीं तुमसे पूछूँगी कि मेरे बाद मेरी तरह किसी को छुआ है क्या ना मैं इस युग की मीरा हूँ ना हो तुम मेरे घनश्याम बस इश्क़ है तुमसे बेपन्नह मुझे बाक़ी सब कुछ है मुझमें आम तुम भी सोचते होगे ना यह तीली सा इश्क़, ज्वालामुखी कब हुआ यूँ समझ लो तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे ख़याल ने दिन में 100 बार मुझे छुआ अब गणित में तो तुम अव्वल हो हिसाब लगा ही लोगे पर सोच के आना जनाब पिछले 15 सालों का हिसाब कैसे दोगे तो आना बस फ़ुरसत में यूँ दो चार घंटे के लिए नहीं सिर्फ़ हाल चाल नहीं पूछना बातें करनी है तुमसे कई
तुम किसी बड़े शहर की बड़ी इमारत और मैं नुक्कड़ वाली पान की दुकान तुम्हें महँगी चीज़े पसंद हैं और मेरे पास है चवन्नी-अठन्नी का सामान फिर भी तुम मुझे देखते हो कुछ तो बात होगी मुझमें और भी कई आशिक़ है मेरे ज़्यादा इतराना मत ख़ुद पे बस ये दिल साला बीड़ी सा सुलगता है जो तुझे एक बार देख लूँ समझ नहीं आता अपने छोटे बजट में क्या तोहफ़ा तुम्हें भेज दूँ इश्क़ बहुतो को ले डूबा हैं अब मैं कैसे किनारा करूँ तुझसे जो नैन लगाये हैं दिल कहता है ये कांड मैं दोबारा करूँ उँगलियों पे गिनती हूँ मैं घंटे फ़ोन पे लगाती हूँ अलार्म हाय, मैं रही मॉडर्न डे मीरा तुम किसन कन्हैया घनश्याम आओ कभी हमारी गली दिन, तारीख़, मौसम मत देखना सरप्राइज सा देना मुझे आने की खबर भी ना भेजना तुम जैसे अमीर से मुझ जैसे गरीब ने दिल लगाया है जितना तुम्हारा दिन का खर्चा है उतना मेरा पाँच महीने का किराया है पर इश्क़ पैसा नहीं देखता ना देखता है औक़ात मुझे तुम्हारी सादगी पसंद आई काश तुम्हें भी पसंद हो मेरी कोई बात
वो पीले फूलों का बाग़ वो हल्के रंगो की शाम तुम वही मिलना मुझसे जिस मोड़ पे आख़िरी बार लिया था मेरा नाम इत्तेफ़ाक़ से मिले थे हम और शिद्दत से निभाया था हमने प्यार कहाँ वो 90 के दशक की आशिक़ी और कहाँ आजकल का हैशटेग-वैशटेग सा व्यापार दिन गुज़ारे थे साथ हमने बांधा था सपनों का संसार कब सोचा था मैंने कि मैं रह जाऊँगी दिल्ली में और तुम बस जाओगे सात समुंदर पार सुना है वहाँ बर्फ गिरती है खूब लोग वहाँ चाय कम कॉफ़ी ज़्यादा पीते हैं और यहाँ चाय की हर एक चुस्की पे जनाब कॉलेज के दिनों को हम लाखों बार जीते हैं बहुत उधेड़ बून करती हूँ मैं बहुत सोचती हूँ तुम्हारे बारे में तुम काफ़ी आगे बढ़ गाये और मैं रह गई किनारे पे खनक आज भी है तेरी मद्धम सी आवाज़ की ज़िंदा मेरी बचकानी बातों पे तुमने नहीं किया था मुझे कभी शर्मिंदा रेत से थे तुम तुम्हें मुट्ठी में बांध नहीं पाई कहाँ सागर, कहाँ साहिल और ये हज़ार मीलों की जुदाई सुना है तुम दिसंबर में आ रहे हो हर बार की तरह 4 हफ़्ते के लिए तुम हमेशा लाते हो महंगे तोहफे और मैंने तुम्हे सिर्फ ताने ही दिए क्या कोई नाम है इस रिश्ते का क्या कोई हक़ है मेरा
summarized perfectly! A mother is a mother :)
ReplyDeleteA master stroke on the life of a prostitute. It's never a choice!
ReplyDeleteSuch a sad few lines. And powerful.
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