शहर में एक अफवाह सी है कि आज भी तुझे मेरी परवाह सी है वो घर जहाँ घंटों बिताए थे साथ हमने उसे छोड़ने की मेरे पास अब लाखों वजह सी हैं कि आज भी तुझे मेरी परवाह सी है खाली सी साँझों में देखते है लौटते हुए परिंदों को पर इस भरी दुनिया में क्या मेरे लिए कोई जगह भी है क्यों आज भी तुझे मेरी परवाह सी है क्यों नहीं रह सके साथ हम उम्र भर यही सोच सोच ज़िन्दगी तबाह सी है फिर क्यों तुझे मेरी परवाह सी है शहर में एक अफवाह सी है कि आज भी तुझे मेरी परवाह सी है
It’s all about creating magic in words!