यूँ दो चार घंटे के लिए नहीं
फ़ुर्सत में मिलना मुझसे यूँ दो चार घंटे के लिए नहीं सिर्फ़ हाल चाल नहीं पूछना बातें करनी है तुमसे कई देखना है तुम्हें एक टक शिकवे करने है तुमसे कई हज़ार जब नाराज़ हुए थे तुम मुझसे और जब छेड़ा था मुझे बीच बाज़ार चवन्नी-अठन्नी सा ढोंग मत करना मान लेना मेरे हर कहे को सुबकियाँ से काम मत चलाना बेहने देना ग़र आँसू बेहे तो सख़्त होने का दिखावा छोड़ आना नुक्कड़ वाले बनिये की दुकान पे सिद्दत से एक बार बोल देना कि गलती होती है इंसान से तुम मुझे छोड़ गए उसका तुम्हें कभी अफ़सोस हुआ है क्या मैं नहीं तुमसे पूछूँगी कि मेरे बाद मेरी तरह किसी को छुआ है क्या ना मैं इस युग की मीरा हूँ ना हो तुम मेरे घनश्याम बस इश्क़ है तुमसे बेपन्नह मुझे बाक़ी सब कुछ है मुझमें आम तुम भी सोचते होगे ना यह तीली सा इश्क़, ज्वालामुखी कब हुआ यूँ समझ लो तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे ख़याल ने दिन में 100 बार मुझे छुआ अब गणित में तो तुम अव्वल हो हिसाब लगा ही लोगे पर सोच के आना जनाब पिछले 15 सालों का हिसाब कैसे दोगे तो आना बस फ़ुरसत में यूँ दो चार घंटे के लिए नहीं सिर्फ़ हाल चाल नहीं पूछना बातें करनी है तुमसे कई
Poetic brilliance as usual! :)
ReplyDeleteBeautifully penned...sad.
ReplyDeleteHe or She :)
ReplyDeleteLove it. A stunning one:)
ReplyDeleteLovely and heartfelt.
ReplyDeleteImpressive #poetry !! Love reading your blogs
ReplyDeletehttp://www.bootsandbutter.com
Wow. Short, but it hit me hard!
ReplyDeleteWonderfully written.
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